Saturday, March 9, 2019

भूल का सुधार

संसार के द्वारा प्रदत किसी भी पद का उद्देश्य मुझे दूसरों की सेवा में लगाना है। अपने कर्तव्य की विस्मृति ही पतन का कारण है। साथ-ही-साथ अपने अधिकार की भी रक्षा करनी चाहिए जो हमें सेवा करने के लिए आवश्यक बल और प्रेरणा देता है। जिसके अधिकार या स्वाभिमान का हनन हुआ हो उसकी कर्तव्य-कर्मों में स्वाभाविक प्रवृति नहीं होती। अतः अपने अधिकार की रक्षा भी हमारा कर्तव्य है। क्या संपूर्णतया भूलरहित होना सम्भव है? कभी-कभी भुलवश हम कर्तव्यच्युत होकर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगते है। दूसरों के अधिकारों का हनन करके हम दूसरों से गैर-यथार्थवादी अपेक्षाएँ कर लेते है। परिणामतः निराशा हाथ लगती है और हमें अपनी भूल का एहसास होता है और आत्मसुधार की दिशा में कार्य करके हम अपने-आप को और भी बेहतर तरीक़े से जान पाते हैं और इस तरह से भविष्य में भूल दुहराने की सम्भावना कम होती जाती है।

अगर मन-रचित संसार का आधार आत्म-स्फूरित सत्य, प्रेम और करुणा हो तो जीव के द्वारा स्वाभाविक रूप से ख़ुद का और संसार का हित और न्याय होगा। अतः आत्म-सुधार के लिए ज़रूरी है अपने अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद सत्य रूपी बीज को आत्मा से सिंचित करने की।

यह संसार भी सत्य की ही अभिव्यक्ति है। बिना प्रमाण के सत्य को स्वीकार करना सहज नहीं होता। बिना प्रमाण के किसी भी बात को स्वीकार करना अंधविश्वास की खाई में उतरना है। परस्पर वैचारिक संचार को प्रोत्साहन मिलना चाहिए जो गलतफहमियों को दूर करने में काफ़ी हद तक मदद करता है।

कोई भी समस्या जो हमें परेशान कर रही है वो मुझे धैर्यपूर्वक समस्या के मूल में जाने का और आत्म-मूल्याँकन करने का न्योता दे रही है।