Friday, December 28, 2018

हरि शरण

क्या हरि के शरण में जाना चाहिए? हरि के शरण में कब जाना चाहिए? हरि के शरण में क्यों जाना चाहिए? हरि के शरण में जाने का क्या मतलब होता है? हरि के शरण में किसे जाना चाहिए? क्या केवल पापात्मा को ही हरि के शरण में जाना चाहिए? क्या केवल पुण्यात्मा ही हरि के शरण में जा सकते है? पापात्मा और पुण्यात्मा लोग कौन होते है? क्या पाप और पुण्य से परे व्यक्ति ही हरि के शरण में होते है? हरि कौन है? क्या माँ-पिता हरि के स्वरूप नही है? क्या गुरु हरि का स्वरूप है? क्या गुरु पाखण्डी नही होता है? क्या प्रकृति हरि का स्वरूप है? प्रकृति और पुरुष में क्या अंतर है? क्या जगदम्बा हरि का स्वरूप है? क्या जगदम्बा माया है और इससे दूर रहना चाहिए? हरि की माया क्या है? हमें माया के कौन डालता है? क्या हम ख़ुद माया में ख़ुद को भूल जाते है? क्या हम जैन-बूझकर ख़ुद को भूल जाते है? आत्म-स्वरूप क्या है? आत्म-स्मृति प्राप्त होने पर क्या याद आता है? मेरे और हरि के बीच क्या सम्बंध है? क्या हरि और मैं तत्वतः एक है? क्या मैं हरि का नित्य सेवक हूँ? क्या हरि सबके स्वामी है? सेवा का अर्थ क्या है? क्या हरि को सेवकों की ज़रूरत है? क्या हरि स्वयं में ही परिपूर्ण है? क्या मैं स्वयं में परिपूर्ण नही हूँ? हरि की लीला क्या है? क्या हरि की लीला में सचमुच आनंद है? क्या हरि की सेवा में सचमुच आनंद है? व्रत और उपवास किसलिए है? क्या वर्तमान में कष्ट सहकर भविष्य में आनंद की आकांक्षा करना उचित है? क्या हमें वर्तमान में ही जीना चाहिए या अपने भविष्य को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए? क्या नियम, व्रत और उपवास से भविष्य सुधर सकता है? क्या सबका वर्तमान कष्टकारक है?

Thursday, December 27, 2018

क्या हमेशा सत्य की ही जीत होती है?

क्या हमेशा सत्य की ही जीत होती है? क्या सत्य कभी छुप नहीं सकता? क्या राम-नाम सत्य है? क्या सत्य परमात्मा का स्वरूप है? क्या हमेशा सत्य-वचन ही बोलना चाहिए। क्या मज़ाक़ में भी झूठ नही बोलना चाहिए? क्या मज़ाक़ में भी बोले गये झूठ से हमारी आदत ख़राब हो सकती है? क्या किसी को भयंकर परिणामों से बचाने के लिए झूठ बोला जा सकता है? क्या झूठ बोलकर बचाने पर भी व्यक्ति को किसी-न-किसी रूप में अपने कर्मों का परिणाम भुगतना ही पड़ता है? क्या किसी को दंड देने वाला व्यक्ति ख़ुद झूठा और अन्यायी नही हो सकता? जान-बूझकर बोले गये झूठ का या अनजाने में बोले गये झूठ का दंड भुगतना पड़ता है? क्या हमें ऐसा ही वर्ताव करना चाहिए जिससे ख़ुद का और दूसरों का हित हो? सत्य क्या है? क्या हमारी इंद्रियों से अनुभूत चीज़ें सत्य है? क्या ईश्वर की यही इच्छा है कि हम इंद्रियों के द्वारा अनुभूत सत्य को हो सत्य मानते रहें? क्या ईश्वर की भी इच्छा होती है? क्या ईश्वर होता है? क्या हम विवेक से सत्य और असत्य का निर्णय ले सकते है? हमें विवेक कहाँ से प्राप्त होता है? क्या विवेक स्वास्थ्य-वर्धक चीज़ों को खाने से और अभ्यास करने से प्राप्त होता है? क्या परिस्थितियों का सदुपयोग करने से विवेक की प्राप्ति होती है? क्या ध्यान करने से विवेक की प्राप्ति होती है? विवेक किसलिए ज़रूरी है? क्या ध्यान आवश्यक है? ध्यान का स्वरूप क्या है? व्यक्ति का कर्तव्य क्या है? कर्तव्य क्या है? कृष्ण झूठ क्यों बोलते थे? क्या कृष्ण का अनुकरण उचित है? क्या किसी भी व्यक्ति का अनुकरण उचित है? क्या कृष्ण के द्वारा बोले गये झूठ को उचित ठहराया जा सकता है? अगर इसे उचित ठहराया जाता है तो क्या यह नियम किसी भी अन्य मनुष्य पर लागू हो सकता है? क्या कृष्ण नियमों से परे हैं? क्या मनुष्य-मात्र नियमों से परे हो सकता है? मनुष्य नियमों से परे कैसे हो सकता है? नियम बनाता कौन है? विधाता कौन है? उसकी विधि क्या है? मानव निर्मित नियम और विधाता रचित विधि में क्या अंतर है? क्या मनुष्य मानव-निर्मित नियमों से परे हो सकता है या विधाता के विधानों से? क्या कृष्ण विधाता के विधानों से भी परे थे?  

Sunday, December 23, 2018

क्या भारत में प्रीत ही रीति हैं?

क्या भारत में प्रीत ही रीति हैं? क्या अन्य देशों में आपसी मेलजोल और प्रेम नहीं हैं? क्या भारत के लोगों में सचमुच प्रेम हैं? समय के साथ सबकुछ बदल जाता हैं। हो सकता है प्राचीन काल मे हमारा देश महान हो। हमें वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। हमारे बच्चों के दिल व दिमाग़ मे इस ग़लत तथ्य का बिज़ारोपन कर दिया गया है की भारत एक महान देश है। इस बीज ने अहम का रूप ले लिया और हमारी मानसिकता को संकुचित बना दिया। हम दूसरों से कुछ सिखने योग्य नही बचे। और हमारा जीवन कुंठित हो गया। हमारे मानस कल्पतरु मे जो ज्ञान और अनुभव के नए-नए कोंपल उग सकते थे उसे हमारी अहम ने पहले ही रोक दिया और सारी सम्भावनाएँ समाप्त हो गयी। 

इस देश मे व्याप्त व्यापक प्रदूषण हमारे समाज की अंतर्मन की दशा को बतलाता है। अपनी वास्तविकताओं को नकारकर ख़ुद को एक तथाकथित सभ्य समाज मे ढालने की हमारी ख़ुद की चेष्टा ने हमारे मन को विकृत कर दिया है। हमने ख़ुद को समझने के बजाय अपने स्वभाव के प्रति जंग छेड़ दी है। यह हमारी अपूर्ण और अपरिपक्व ज्ञान को दर्शाता है। और जब हम इस अधूरे ज्ञान के साथ समाज का कल्याण करने निकलते है तो सिर्फ़ मन मे अराजकता ही उत्पन्न करने मे सफल हो पाते है। अहंकारवश हममें अभी इतना भी धैर्य नही है कि हम अपने घर के सामान्य वयोवृद्धों के जीवन के अनुभवों को सहज रूप से स्वीकार कर सकें। हमें पूर्णता केवल उन्ही लोगों मे दिखता है जिन्होंने धन-प्राप्ति, पद-प्राप्ति और वाक्-चातुर्य मे कुशलता प्राप्त कर ली है। भारतीय युवाओं को ऐसे अंधानुकरण से बचना चाहिए।

Saturday, December 22, 2018

क्या जग में दो ही प्यारे नाम है?

क्या जग में दो ही प्यारे नाम है, राम और श्याम( अथवा कृष्ण)? वो ही राम है, वो ही रहीम है, वो ही करीम है और वो ही कृष्ण है। सब उसके ही नाम है। सब उसके ही रूप है। जब भी एक बच्चा पैदा होता है, वो एक नया रूप लेकर प्रकट होता है। उसके सारे नाम उसके अपने नहीं है बल्कि उसके अपनों और प्यारों के द्वारा दिए गये नाम है।

क्या किसी भी एक या दो नाम से सम्बंध बनाने की कोशिश करना और शेष सभी नामों को नज़रअन्दाज़ करना उचित है? क्या कोई भी एक या दो नाम और रूप पूर्ण है? यदि वो पूर्ण भी हो तो क्या हममें उनकी पूर्णता को अपने में पूर्णतया समावेश करने की क्षमता है? यदि केवल एक या दो नाम और रूप ही आवश्यक है तो फिर परमात्मा के द्वारा रचित इस संसार में अन्य नामों और रूपों का क्या औचित्य है?

क्या सभी से कुछ-न-कुछ सिखा जा सकता है? हमें दूसरों से क्या सिखना चाहिए? क्या हमारा लक्ष्य अपनी जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए होना चाहिए? या फिर हमारा लक्ष्य दूसरों का यथासंभव मदद करने के लिए होना चाहिए? परंतु यह ख़याल ज़रूर रखना चाहिए की हमारे मदद से किसी का अहित ना हो। अपना भी अहित ना हो। सभी सुखी हो जाएँ। सभी निरोग हो जाएँ। यह भावना होना चाहिए। लेकिन ऐसा ना भी हो तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। जब तक हम ख़ुद शांतिपूर्ण नहीं होंगे, हम किसी भी दूसरे का मदद नहीं कर सकते। क्या किसी की सेवा करना उसका मदद करना है? बिलकुल नहीं। हमें दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने में उसकी मदद करनी चाहिए। किंतु इसके पहले स्वयं आत्मनिर्भर होना चाहिए। दूसरों की पूर्णता से प्रेरणा लेकर हमें अपने अंदर की पूर्णता को ढूँढने की कोशिश करनी चाहिए। पहले आत्मकल्याण और फिर बाद में समाजकल्याण। तथ्य तो यह है की आत्मकल्याण में ही समाजकल्याण निहित है।

क्या सब कुछ हरि-इच्छा से होता है?

क्या सब कुछ हरि-इच्छा से होता है? क्या हरि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के प्रतीक है? क्या ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से प्रत्येक क्षण एक नवीन स्वरूप धारण करने की इच्छा है? 

क्या मनुष्य या कोई भी जीव एक यंत्र मात्र हैं? क्या मनुष्य अन्य जीवों से सच में ही बेहतर है? निश्चय ही मनुष्य को अन्य जीवों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है।क्या सचमुच मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में अधिक स्वतंत्र है? क्या ऐसा नहीं है की एक मनुष्य ने ही दूसरे मनुष्यों को ग़ुलाम बना रखा है? क्या मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में ज़्यादा चिंतित और परेशान नहीं हैं? क्या मनुष्य के ख़ुद के स्वभाव ने उसे अन्य वस्तुओं या व्यक्तियों का ग़ुलाम नहीं बना रखा है? 

"मनुष्य के स्वतंत्रता का भी एक दायरा है।" - क्या यह कथन सभी मनुष्यों के लिए लागू होता है? क्या मनीषियों के द्वारा की गयी पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा एक कल्पना मात्र है? 

क्या प्रकृति के नियमों के अनुसार चलने मात्र से उस पूर्ण स्वतंत्रता को अनुभव किया जा सकता है? भोले मनुष्यों के मन में मानव निर्मित नियमों का जो बिज़ारोपन किया गया है, उन मनुष्यों को ये विवेक कहाँ से मिलेगा जिससे वे मानव-निर्मित और प्राकृतिक नियमों में भेद कर सकें और अपना कल्याण कर सकें। क्या वे सचमुच में भोले हैं? क्या मानवनिर्मित नियमों का अनुशरण करके कोई अपना कल्याण कर सकता है? क्या मानवनिर्मित नियम किसी विशेष देश-काल के लिए नहीं है? क्या किसी एक व्यक्ति के द्वारा अपने अनुभवों को दूसरे व्यक्तियों पर थोपना हरि-इच्छा ही है? विवेक-विरोधी आग्रह का पालन एक बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा कैसे होता है? क्या विवेक-विरोधी आग्रह हमें जीवन जीने की एक नयी कला सिखाने के उद्देश्य से प्रकट होती है?

Friday, December 21, 2018

क्या कृष्ण सबसे महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट व्यक्ति हैं?

क्या कृष्ण सबसे महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट व्यक्ति हैं? क्या कृष्ण से ज़्यादा पूर्ण व्यक्ति आजतक इस धरती पर नहीं हुआ? महात्मा गांधी अहिंसा का प्रचार करते थे और वे कृष्ण के भगवद्गीता का भी प्रचार करते थे। किंतु कृष्ण तो हिंसक थे। क्या महाभारत काल में जो माहौल था, उस माहौल में हिंसा अनिवार्य था? क्या गांधी की अहिंसक विचारधारा से महाभारतकाल के समाज का कल्याण असम्भव था?

क्या महाभारत महर्षि व्यास के द्वारा लिखा गया एक काल्पनिक ग्रंथ है? हमें पता है की भगवद्गीता महाभारत का ही एक अंश मात्र है। अतः भगवद्गीता भी काल्पनिक ही हुई। यह कहा जा सकता है की भगवद्गीता में महान विचारक महर्षि व्यास के उत्कृष्ट विचारों का दो व्यक्तियों के संवाद के रूप में संग्रह है। और महर्षि व्यास ने अपने अंतह्मण के द्वंदों को दो व्यक्तियों के भावों के रूप में साकार किया है और साथ-ही-साथ अपने श्रेष्ठ विचार को महत्ता देते हुए एक विचारवाद को स्थापित किया है।