Thursday, February 28, 2019

मैं शरीर ही हूँ

मैं शरीर ही हूँ और कर्ता एवं भोक्ता भी। जो भी करो वही करो जो हमें करते वक़्त ही ख़ुशी दे। जो काम करने में मन लगे वही करो। अगर भविष्य की योजनाएँ बनाने में मन लगता है तो योजना बनाओ। लेकिन ये जान लो की भविष्य हमारे हाथ में नहीं है। भविष्य में हमेशा कुछ नया और अप्रत्याशित मिलेगा। भविष्य में नए तरीक़े से आनंद अनुभव करने का मौक़ा मिलेगा। अतः तुम्हें भविष्य में अपनी सारी योजनाओं को छोड़ने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। 

एक मत के अनुसार, "अपने आप को शरीर मानने के कारण हम अपने आप को कर्ता भी मानने लगेंगे और फिर भविष्य में अपने कर्मों का अपेक्षित फल न मिलने पर हमें दुःख होगा। अतः दुःख से बचने के लिए हमें अपने आप को शरीर नहीं मानना चाहिए।" 

किंतु अपने आप को शरीर नहीं मानने की ज़रूरत नहीं है अगर दो बातों का ख़याल रखें : 
(1)जो भी सुख है सब वर्तमान में है और 
(2)भविष्य में हमारी सारी योजनाओं पर पानी फिरने वाला है। 

अतः हमें अपने पूर्वानुभूतियों से नहीं बँधना है क्योंकि जीवन का हमारे प्रति नित्य नए आनंदानुभव देने का वचन है।

Wednesday, February 27, 2019

अज्ञात में क़दम

जीव के बंधन का मूल कारण है अपने मत के प्रति आग्रह। हमारा ज्ञान अधूरा है। इसलिए अपने तुच्छ ज्ञान पर आश्रित मत हो। अपने मत के विपरीत अगर कुछ हो जाए तो उसे स्वीकारना चाहिए। अस्तित्व के सामने किसी का हठ नहीं चलता। ज्ञानवृद्धि हेतु अज्ञात में क़दम सोच-विचारकर सावधानीपूर्वक रखना चाहिए। अज्ञात में क़दम रखना प्रयोग के समान है ताकि जिससे अस्तित्व के प्रकृति को और भी बेहतर तरीक़े से समझा जा सके। अस्तित्व चेतन है। अस्तित्व का स्वभाव सभी सिद्धांतों से परे है। यह किसी भी सिद्धांत में नहीं समा सकता। जीवन के किसी भी अनुभव को सिद्धांत नहीं बनाना चाहिए। अज्ञात में प्रत्येक क़दम हमें नित्य नए अनुभव दे सकता है अगर हम पूर्वाग्रहों से मुक्त हो।

Tuesday, February 26, 2019

संसार

संसार प्राप्त है और परमात्मा प्रतीति है। परमात्मा के सम्मुख होना बंधन है। संसार के सम्मुख होना मुक्ति है। संसार का अभाव कभी हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं। संसार की सत्ता का अनुभव करना ही मुक्ति है। संसार ही हमारा परम स्वरूप है। बंधन और मोक्ष दोनों सच में संसार में है। ताक़तवर सबको नज़र आता है। शक्तिहीन की तरफ़ किसी की नज़र नहीं जाती। जो ताक़तवर है वही दिखाई देता है। संसार ही सबका आधार है, संसार का आधार कोई नहीं। संसार वास्तव में है और वह सबको दिखता है। जो दिखता है वही वास्तविकता है। शरीर माता-पिता का अंश नहीं है, शरीर संसार का अंश है, लेकिन फिर भी शरीर में माता-पिता दोनों दिखते हैं। संसार से ही प्रकृति और परमात्मा उत्पन्न होते है और संसार में ही प्रकृति और परमात्मा का दर्शन होता है। संसार का कार्य प्रकृति है।
अपने आप को विवेकी और बुद्धिमान मानने वाला व्यक्ति अर्थात बुद्धिजीवी निम्न कोटि का है जो उच्च कोटि के परिश्रमी व्यक्ति या श्रमजीवीयों की दया पर पल रहा होता है। बुद्धिमान व्यक्ति दुष्ट या आसुरी प्रकृति के लोग होते हैं जो मायाजाल फैलाकर, भोले-भाले दैवी प्रकृति के लोगों को भ्रमित कर उनका हिस्सा हड़प लेते है। दैवी लोगों में जब सुख और सम्मान का लोभ उत्पन्न होता है तब बुद्धिजीवी उन्हें कुतर्क के अदृश्य और अज्ञात परमात्मारूपी विशाल मायाजाल में फँसा लेते है। दैवी लोगों की पुण्यशक्ति कभी कभी उन्हें इस दानवों के मायाजाल से बचा लेता है।

Monday, February 25, 2019

अज्ञात से मुक्ति

संसार ख़ुद का ही रूप है। संसार ख़ुद से भिन्न नहीं है। सब स्वभाव से ही तत्वज्ञ है अर्थात सब संसार को जानता है। 
संसार में जीवन का सुख है, अतः जन्म और मरण में भी आनंद है। बार-बार जन्म लेकर मैं नित्य नए तरीक़े से संसार का भोग करूँगा।
ख़ुद का संसार में स्थित हो जाना ही योग है।
योग के पूर्ण होने पर अज्ञात का नाश हो जाता है। योग के पूर्ण होने पर संसार अपना लगने लगता है।
जप, तप, व्रत, पूजा, पाठ आदि महान अनिष्टकारी कार्य है जो ख़ुद को संसार से दूर कर देता है। किसी भी तरह का अंधअभ्यास ख़ुद और संसार के अपनेपन को छिन लेता है।
तत्त्व का अनुभव करनेके लिये अज्ञात को महत्त्व देना महान् अज्ञान है; संसार को महत्व देना चाहिए जिसे सब जानते हैं।
अज्ञात या भगवान का प्रलोभन सोने की बेड़ी के समान है, जिसका त्याग बहुत कठिन है।
Everything is in conscious dynamic motion.

Friday, February 15, 2019

जीवन से प्रेम

अगर हमें जीवन का यथार्थ दर्शन हो तो हमारा सर प्रेम और सम्मान से झुक जाएगा। लेकिन हम जीवन में भी वस्तु की कल्पना कर लेते हैं। जीवन तुमसे प्रेम चाहता है। लेकिन तुम जीवन को भोगने लगते हो। जीवन चैतन्य है और वह तुमसे भी चैतन्यता की आस करता है। जगत चैतन्य है, वस्तु नहीं। हमें जगत से प्रेम का आदान-प्रदान करना है, इसे भोगना नहीं है। सतर्कता की ज़रूरत है। जागने की ज़रूरत है। जगत को भोगना जीवन की हत्या है। जीवन की हत्या कर हम अकेले हो जाएँगे। प्रेम-शून्य जीवन बहुत ही कष्टकारक होता है। हम जीवन को जानना नहीं चाहते क्योंकि हमारा सोच बहुत ही संकुचित है। जीवन से प्रेम प्रतिक्षण  आनंद के नए द्वार खोलता है। किंतु अपनी संकुचित विचारधारा के कारण हम इससे वंचित रह जाते हैं। 

जीवन का सम्मान

जीवन का सम्मान करना चाहिए। सारा जगत अपना ही रूप है। सारा जगत अपना है। जब हम अपने के लिए कुछ करते है तो परिश्रम का बोध नहीं होता है। हमें ये नहीं लगता है की मैंने कोई उपकार किया है। बल्कि ये लगता है की हमने अपनी ज़िम्मेवरियों का निर्वाह किया है। जब हम अपनों के लिए कुछ करते है तो हमें वास्तविक सुख मिलता है, ख़ुद के हृदय को तसल्ली मिलती है, शांति मिलती है। लेकिन इस सुख से बन्धना नहीं चाहिए। सुख से बंधने का तात्पर्य है क्रिया की पुनरावृति अर्थात चबे हुए को चबाना। फिर तो रस नहीं मिलेगा। जीवन रस-पूर्ण होना चाहिए। किंतु रस की अभिलाषा से बँधना नहीं चाहिए। स्वाभाविक क्रिया करना चाहिए। जब हम किसी भी तरह के सुख या अभिलाषा से बँधे होते है तो हम अपने या दूसरों के साथ ज़बरदस्ती करते हैं, ख़ुद को या दूसरों को निचोड़ने की कोशिश करते है, यही हिंसा है, अपने के और दूसरों के प्रति।  स्वाभाविक क्रिया में ही रस है। सारा जगत अपना है और उनकी स्वाभाविक सेवा करना ही हमारा कर्म है।

स्वतंत्रता

जो स्वतंत्र है वो शुद्ध है। जो परतंत्र है वो अशुद्ध है। अशुद्धि परतंत्रता से आती है। सबको स्वतंत्रता मिलना चाहिए। सबकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। सबकी स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान न करने का मतलब है की हम अपने विचारों के ग़ुलाम है। सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलना चाहिए। अभिव्यक्ति सिर्फ़ बोलकर या लिखकर नहीं होती, हमारे सारे क्रियाकालाप, हमारा नाचना, गाना, हँसना, रोना, क्रोधित होना, रूठना सब के सब हमारी अभिव्यक्ति का हिस्सा है। एक स्वतंत्र व्यक्ति के लिए समाज में हो रही कोई भी घटना सही अथवा ग़लत नहीं है, उसके लिए सबकुछ एक दिव्य लीला है। जब हम अपने विचारों के ग़ुलाम होते है तब हममें द्वन्द भाव पैदा होता है, दुनिया दो भागों में बट जाती है, आधी दुनिया सही और आधी दुनिया ग़लत। अतः अपने विचारों को पकड़कर नहीं रखना चाहिए। अपने से विचारों को बह देना चाहिए। नए विचारों को आने के लिए जगह देना चाहिए। ये संसार बहुत ही सुंदर है अगर हम ख़ुद स्वतंत्र बने और दूसरों की भी स्वतंत्रता का सम्मान करें। जीयो और जीने दो।