Friday, February 15, 2019

जीवन से प्रेम

अगर हमें जीवन का यथार्थ दर्शन हो तो हमारा सर प्रेम और सम्मान से झुक जाएगा। लेकिन हम जीवन में भी वस्तु की कल्पना कर लेते हैं। जीवन तुमसे प्रेम चाहता है। लेकिन तुम जीवन को भोगने लगते हो। जीवन चैतन्य है और वह तुमसे भी चैतन्यता की आस करता है। जगत चैतन्य है, वस्तु नहीं। हमें जगत से प्रेम का आदान-प्रदान करना है, इसे भोगना नहीं है। सतर्कता की ज़रूरत है। जागने की ज़रूरत है। जगत को भोगना जीवन की हत्या है। जीवन की हत्या कर हम अकेले हो जाएँगे। प्रेम-शून्य जीवन बहुत ही कष्टकारक होता है। हम जीवन को जानना नहीं चाहते क्योंकि हमारा सोच बहुत ही संकुचित है। जीवन से प्रेम प्रतिक्षण  आनंद के नए द्वार खोलता है। किंतु अपनी संकुचित विचारधारा के कारण हम इससे वंचित रह जाते हैं। 

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