संसार ख़ुद का ही रूप है। संसार ख़ुद से भिन्न नहीं है। सब स्वभाव से ही तत्वज्ञ है अर्थात सब संसार को जानता है।
संसार में जीवन का सुख है, अतः जन्म और मरण में भी आनंद है। बार-बार जन्म लेकर मैं नित्य नए तरीक़े से संसार का भोग करूँगा।
ख़ुद का संसार में स्थित हो जाना ही योग है।
योग के पूर्ण होने पर अज्ञात का नाश हो जाता है। योग के पूर्ण होने पर संसार अपना लगने लगता है।
जप, तप, व्रत, पूजा, पाठ आदि महान अनिष्टकारी कार्य है जो ख़ुद को संसार से दूर कर देता है। किसी भी तरह का अंधअभ्यास ख़ुद और संसार के अपनेपन को छिन लेता है।
तत्त्व का अनुभव करनेके लिये अज्ञात को महत्त्व देना महान् अज्ञान है; संसार को महत्व देना चाहिए जिसे सब जानते हैं।
अज्ञात या भगवान का प्रलोभन सोने की बेड़ी के समान है, जिसका त्याग बहुत कठिन है।
Everything is in conscious dynamic motion.
संसार में जीवन का सुख है, अतः जन्म और मरण में भी आनंद है। बार-बार जन्म लेकर मैं नित्य नए तरीक़े से संसार का भोग करूँगा।
ख़ुद का संसार में स्थित हो जाना ही योग है।
योग के पूर्ण होने पर अज्ञात का नाश हो जाता है। योग के पूर्ण होने पर संसार अपना लगने लगता है।
जप, तप, व्रत, पूजा, पाठ आदि महान अनिष्टकारी कार्य है जो ख़ुद को संसार से दूर कर देता है। किसी भी तरह का अंधअभ्यास ख़ुद और संसार के अपनेपन को छिन लेता है।
तत्त्व का अनुभव करनेके लिये अज्ञात को महत्त्व देना महान् अज्ञान है; संसार को महत्व देना चाहिए जिसे सब जानते हैं।
अज्ञात या भगवान का प्रलोभन सोने की बेड़ी के समान है, जिसका त्याग बहुत कठिन है।
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