संसार प्राप्त है और परमात्मा प्रतीति है। परमात्मा के सम्मुख होना बंधन है। संसार के सम्मुख होना मुक्ति है। संसार का अभाव कभी हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं। संसार की सत्ता का अनुभव करना ही मुक्ति है। संसार ही हमारा परम स्वरूप है। बंधन और मोक्ष दोनों सच में संसार में है। ताक़तवर सबको नज़र आता है। शक्तिहीन की तरफ़ किसी की नज़र नहीं जाती। जो ताक़तवर है वही दिखाई देता है। संसार ही सबका आधार है, संसार का आधार कोई नहीं। संसार वास्तव में है और वह सबको दिखता है। जो दिखता है वही वास्तविकता है। शरीर माता-पिता का अंश नहीं है, शरीर संसार का अंश है, लेकिन फिर भी शरीर में माता-पिता दोनों दिखते हैं। संसार से ही प्रकृति और परमात्मा उत्पन्न होते है और संसार में ही प्रकृति और परमात्मा का दर्शन होता है। संसार का कार्य प्रकृति है।
अपने आप को विवेकी और बुद्धिमान मानने वाला व्यक्ति अर्थात बुद्धिजीवी निम्न कोटि का है जो उच्च कोटि के परिश्रमी व्यक्ति या श्रमजीवीयों की दया पर पल रहा होता है। बुद्धिमान व्यक्ति दुष्ट या आसुरी प्रकृति के लोग होते हैं जो मायाजाल फैलाकर, भोले-भाले दैवी प्रकृति के लोगों को भ्रमित कर उनका हिस्सा हड़प लेते है। दैवी लोगों में जब सुख और सम्मान का लोभ उत्पन्न होता है तब बुद्धिजीवी उन्हें कुतर्क के अदृश्य और अज्ञात परमात्मारूपी विशाल मायाजाल में फँसा लेते है। दैवी लोगों की पुण्यशक्ति कभी कभी उन्हें इस दानवों के मायाजाल से बचा लेता है।
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