जीव के बंधन का मूल कारण है अपने मत के प्रति आग्रह। हमारा ज्ञान अधूरा है। इसलिए अपने तुच्छ ज्ञान पर आश्रित मत हो। अपने मत के विपरीत अगर कुछ हो जाए तो उसे स्वीकारना चाहिए। अस्तित्व के सामने किसी का हठ नहीं चलता। ज्ञानवृद्धि हेतु अज्ञात में क़दम सोच-विचारकर सावधानीपूर्वक रखना चाहिए। अज्ञात में क़दम रखना प्रयोग के समान है ताकि जिससे अस्तित्व के प्रकृति को और भी बेहतर तरीक़े से समझा जा सके। अस्तित्व चेतन है। अस्तित्व का स्वभाव सभी सिद्धांतों से परे है। यह किसी भी सिद्धांत में नहीं समा सकता। जीवन के किसी भी अनुभव को सिद्धांत नहीं बनाना चाहिए। अज्ञात में प्रत्येक क़दम हमें नित्य नए अनुभव दे सकता है अगर हम पूर्वाग्रहों से मुक्त हो।
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