क्या हरि के शरण में जाना चाहिए? हरि के शरण में कब जाना चाहिए? हरि के शरण में क्यों जाना चाहिए? हरि के शरण में जाने का क्या मतलब होता है? हरि के शरण में किसे जाना चाहिए? क्या केवल पापात्मा को ही हरि के शरण में जाना चाहिए? क्या केवल पुण्यात्मा ही हरि के शरण में जा सकते है? पापात्मा और पुण्यात्मा लोग कौन होते है? क्या पाप और पुण्य से परे व्यक्ति ही हरि के शरण में होते है? हरि कौन है? क्या माँ-पिता हरि के स्वरूप नही है? क्या गुरु हरि का स्वरूप है? क्या गुरु पाखण्डी नही होता है? क्या प्रकृति हरि का स्वरूप है? प्रकृति और पुरुष में क्या अंतर है? क्या जगदम्बा हरि का स्वरूप है? क्या जगदम्बा माया है और इससे दूर रहना चाहिए? हरि की माया क्या है? हमें माया के कौन डालता है? क्या हम ख़ुद माया में ख़ुद को भूल जाते है? क्या हम जैन-बूझकर ख़ुद को भूल जाते है? आत्म-स्वरूप क्या है? आत्म-स्मृति प्राप्त होने पर क्या याद आता है? मेरे और हरि के बीच क्या सम्बंध है? क्या हरि और मैं तत्वतः एक है? क्या मैं हरि का नित्य सेवक हूँ? क्या हरि सबके स्वामी है? सेवा का अर्थ क्या है? क्या हरि को सेवकों की ज़रूरत है? क्या हरि स्वयं में ही परिपूर्ण है? क्या मैं स्वयं में परिपूर्ण नही हूँ? हरि की लीला क्या है? क्या हरि की लीला में सचमुच आनंद है? क्या हरि की सेवा में सचमुच आनंद है? व्रत और उपवास किसलिए है? क्या वर्तमान में कष्ट सहकर भविष्य में आनंद की आकांक्षा करना उचित है? क्या हमें वर्तमान में ही जीना चाहिए या अपने भविष्य को सुधारने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए? क्या नियम, व्रत और उपवास से भविष्य सुधर सकता है? क्या सबका वर्तमान कष्टकारक है?
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