क्या भारत में प्रीत ही रीति हैं? क्या अन्य देशों में आपसी मेलजोल और प्रेम नहीं हैं? क्या भारत के लोगों में सचमुच प्रेम हैं? समय के साथ सबकुछ बदल जाता हैं। हो सकता है प्राचीन काल मे हमारा देश महान हो। हमें वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए। हमारे बच्चों के दिल व दिमाग़ मे इस ग़लत तथ्य का बिज़ारोपन कर दिया गया है की भारत एक महान देश है। इस बीज ने अहम का रूप ले लिया और हमारी मानसिकता को संकुचित बना दिया। हम दूसरों से कुछ सिखने योग्य नही बचे। और हमारा जीवन कुंठित हो गया। हमारे मानस कल्पतरु मे जो ज्ञान और अनुभव के नए-नए कोंपल उग सकते थे उसे हमारी अहम ने पहले ही रोक दिया और सारी सम्भावनाएँ समाप्त हो गयी।
इस देश मे व्याप्त व्यापक प्रदूषण हमारे समाज की अंतर्मन की दशा को बतलाता है। अपनी वास्तविकताओं को नकारकर ख़ुद को एक तथाकथित सभ्य समाज मे ढालने की हमारी ख़ुद की चेष्टा ने हमारे मन को विकृत कर दिया है। हमने ख़ुद को समझने के बजाय अपने स्वभाव के प्रति जंग छेड़ दी है। यह हमारी अपूर्ण और अपरिपक्व ज्ञान को दर्शाता है। और जब हम इस अधूरे ज्ञान के साथ समाज का कल्याण करने निकलते है तो सिर्फ़ मन मे अराजकता ही उत्पन्न करने मे सफल हो पाते है। अहंकारवश हममें अभी इतना भी धैर्य नही है कि हम अपने घर के सामान्य वयोवृद्धों के जीवन के अनुभवों को सहज रूप से स्वीकार कर सकें। हमें पूर्णता केवल उन्ही लोगों मे दिखता है जिन्होंने धन-प्राप्ति, पद-प्राप्ति और वाक्-चातुर्य मे कुशलता प्राप्त कर ली है। भारतीय युवाओं को ऐसे अंधानुकरण से बचना चाहिए।
इस देश मे व्याप्त व्यापक प्रदूषण हमारे समाज की अंतर्मन की दशा को बतलाता है। अपनी वास्तविकताओं को नकारकर ख़ुद को एक तथाकथित सभ्य समाज मे ढालने की हमारी ख़ुद की चेष्टा ने हमारे मन को विकृत कर दिया है। हमने ख़ुद को समझने के बजाय अपने स्वभाव के प्रति जंग छेड़ दी है। यह हमारी अपूर्ण और अपरिपक्व ज्ञान को दर्शाता है। और जब हम इस अधूरे ज्ञान के साथ समाज का कल्याण करने निकलते है तो सिर्फ़ मन मे अराजकता ही उत्पन्न करने मे सफल हो पाते है। अहंकारवश हममें अभी इतना भी धैर्य नही है कि हम अपने घर के सामान्य वयोवृद्धों के जीवन के अनुभवों को सहज रूप से स्वीकार कर सकें। हमें पूर्णता केवल उन्ही लोगों मे दिखता है जिन्होंने धन-प्राप्ति, पद-प्राप्ति और वाक्-चातुर्य मे कुशलता प्राप्त कर ली है। भारतीय युवाओं को ऐसे अंधानुकरण से बचना चाहिए।
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