क्या हमेशा सत्य की ही जीत होती है? क्या सत्य कभी छुप नहीं सकता? क्या राम-नाम सत्य है? क्या सत्य परमात्मा का स्वरूप है? क्या हमेशा सत्य-वचन ही बोलना चाहिए। क्या मज़ाक़ में भी झूठ नही बोलना चाहिए? क्या मज़ाक़ में भी बोले गये झूठ से हमारी आदत ख़राब हो सकती है? क्या किसी को भयंकर परिणामों से बचाने के लिए झूठ बोला जा सकता है? क्या झूठ बोलकर बचाने पर भी व्यक्ति को किसी-न-किसी रूप में अपने कर्मों का परिणाम भुगतना ही पड़ता है? क्या किसी को दंड देने वाला व्यक्ति ख़ुद झूठा और अन्यायी नही हो सकता? जान-बूझकर बोले गये झूठ का या अनजाने में बोले गये झूठ का दंड भुगतना पड़ता है? क्या हमें ऐसा ही वर्ताव करना चाहिए जिससे ख़ुद का और दूसरों का हित हो? सत्य क्या है? क्या हमारी इंद्रियों से अनुभूत चीज़ें सत्य है? क्या ईश्वर की यही इच्छा है कि हम इंद्रियों के द्वारा अनुभूत सत्य को हो सत्य मानते रहें? क्या ईश्वर की भी इच्छा होती है? क्या ईश्वर होता है? क्या हम विवेक से सत्य और असत्य का निर्णय ले सकते है? हमें विवेक कहाँ से प्राप्त होता है? क्या विवेक स्वास्थ्य-वर्धक चीज़ों को खाने से और अभ्यास करने से प्राप्त होता है? क्या परिस्थितियों का सदुपयोग करने से विवेक की प्राप्ति होती है? क्या ध्यान करने से विवेक की प्राप्ति होती है? विवेक किसलिए ज़रूरी है? क्या ध्यान आवश्यक है? ध्यान का स्वरूप क्या है? व्यक्ति का कर्तव्य क्या है? कर्तव्य क्या है? कृष्ण झूठ क्यों बोलते थे? क्या कृष्ण का अनुकरण उचित है? क्या किसी भी व्यक्ति का अनुकरण उचित है? क्या कृष्ण के द्वारा बोले गये झूठ को उचित ठहराया जा सकता है? अगर इसे उचित ठहराया जाता है तो क्या यह नियम किसी भी अन्य मनुष्य पर लागू हो सकता है? क्या कृष्ण नियमों से परे हैं? क्या मनुष्य-मात्र नियमों से परे हो सकता है? मनुष्य नियमों से परे कैसे हो सकता है? नियम बनाता कौन है? विधाता कौन है? उसकी विधि क्या है? मानव निर्मित नियम और विधाता रचित विधि में क्या अंतर है? क्या मनुष्य मानव-निर्मित नियमों से परे हो सकता है या विधाता के विधानों से? क्या कृष्ण विधाता के विधानों से भी परे थे?
No comments:
Post a Comment