Saturday, December 22, 2018

क्या जग में दो ही प्यारे नाम है?

क्या जग में दो ही प्यारे नाम है, राम और श्याम( अथवा कृष्ण)? वो ही राम है, वो ही रहीम है, वो ही करीम है और वो ही कृष्ण है। सब उसके ही नाम है। सब उसके ही रूप है। जब भी एक बच्चा पैदा होता है, वो एक नया रूप लेकर प्रकट होता है। उसके सारे नाम उसके अपने नहीं है बल्कि उसके अपनों और प्यारों के द्वारा दिए गये नाम है।

क्या किसी भी एक या दो नाम से सम्बंध बनाने की कोशिश करना और शेष सभी नामों को नज़रअन्दाज़ करना उचित है? क्या कोई भी एक या दो नाम और रूप पूर्ण है? यदि वो पूर्ण भी हो तो क्या हममें उनकी पूर्णता को अपने में पूर्णतया समावेश करने की क्षमता है? यदि केवल एक या दो नाम और रूप ही आवश्यक है तो फिर परमात्मा के द्वारा रचित इस संसार में अन्य नामों और रूपों का क्या औचित्य है?

क्या सभी से कुछ-न-कुछ सिखा जा सकता है? हमें दूसरों से क्या सिखना चाहिए? क्या हमारा लक्ष्य अपनी जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए होना चाहिए? या फिर हमारा लक्ष्य दूसरों का यथासंभव मदद करने के लिए होना चाहिए? परंतु यह ख़याल ज़रूर रखना चाहिए की हमारे मदद से किसी का अहित ना हो। अपना भी अहित ना हो। सभी सुखी हो जाएँ। सभी निरोग हो जाएँ। यह भावना होना चाहिए। लेकिन ऐसा ना भी हो तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। जब तक हम ख़ुद शांतिपूर्ण नहीं होंगे, हम किसी भी दूसरे का मदद नहीं कर सकते। क्या किसी की सेवा करना उसका मदद करना है? बिलकुल नहीं। हमें दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने में उसकी मदद करनी चाहिए। किंतु इसके पहले स्वयं आत्मनिर्भर होना चाहिए। दूसरों की पूर्णता से प्रेरणा लेकर हमें अपने अंदर की पूर्णता को ढूँढने की कोशिश करनी चाहिए। पहले आत्मकल्याण और फिर बाद में समाजकल्याण। तथ्य तो यह है की आत्मकल्याण में ही समाजकल्याण निहित है।

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