क्या सब कुछ हरि-इच्छा से होता है? क्या हरि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के प्रतीक है? क्या ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से प्रत्येक क्षण एक नवीन स्वरूप धारण करने की इच्छा है?
क्या मनुष्य या कोई भी जीव एक यंत्र मात्र हैं? क्या मनुष्य अन्य जीवों से सच में ही बेहतर है? निश्चय ही मनुष्य को अन्य जीवों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त है।क्या सचमुच मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में अधिक स्वतंत्र है? क्या ऐसा नहीं है की एक मनुष्य ने ही दूसरे मनुष्यों को ग़ुलाम बना रखा है? क्या मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में ज़्यादा चिंतित और परेशान नहीं हैं? क्या मनुष्य के ख़ुद के स्वभाव ने उसे अन्य वस्तुओं या व्यक्तियों का ग़ुलाम नहीं बना रखा है?
"मनुष्य के स्वतंत्रता का भी एक दायरा है।" - क्या यह कथन सभी मनुष्यों के लिए लागू होता है? क्या मनीषियों के द्वारा की गयी पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा एक कल्पना मात्र है?
क्या प्रकृति के नियमों के अनुसार चलने मात्र से उस पूर्ण स्वतंत्रता को अनुभव किया जा सकता है? भोले मनुष्यों के मन में मानव निर्मित नियमों का जो बिज़ारोपन किया गया है, उन मनुष्यों को ये विवेक कहाँ से मिलेगा जिससे वे मानव-निर्मित और प्राकृतिक नियमों में भेद कर सकें और अपना कल्याण कर सकें। क्या वे सचमुच में भोले हैं? क्या मानवनिर्मित नियमों का अनुशरण करके कोई अपना कल्याण कर सकता है? क्या मानवनिर्मित नियम किसी विशेष देश-काल के लिए नहीं है? क्या किसी एक व्यक्ति के द्वारा अपने अनुभवों को दूसरे व्यक्तियों पर थोपना हरि-इच्छा ही है? विवेक-विरोधी आग्रह का पालन एक बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा कैसे होता है? क्या विवेक-विरोधी आग्रह हमें जीवन जीने की एक नयी कला सिखाने के उद्देश्य से प्रकट होती है?
No comments:
Post a Comment