ज़िंदगी जीना है। ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा। अपनों के welfare के लिए
भगवान से प्रार्थना करना स्वार्थ नहीं हैं। मृत्यु के बाद हमारा कोईअस्तित्व नहीं रहता। जन्म के पूर्व भी हमारा कोई अस्तित्व नहीं था। खुल
के जीयो। किसी से दबो मत। अपने अधिकार की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
कोई भी हमसे बड़ा या छोटा नहीं हैं। सब समान है। सच्ची भूख के बिना भगवान
नहीं मिलता। एक भूखे के लिए रोटी ही भगवान हैं। एक दरिद्र के लिए धन ही
भगवान है। एक रोगी व्यक्ति के लिए दवा ही भगवान है। जहाँ जिस चीज़ की
सर्वाधिक ज़रूरत हो जाए, वहाँ उस चीज़ की पूर्ति करना ही भगवान की आज्ञा
का पालन करना है। यही प्रेम है। जो पहले से ही सुखी है उसे और सुखी करना
प्रेम नहीं हैं। यह वासना है। जो सचमुच में अमानी है उसे सम्मान देना ही
प्रेम है, ना की उसे जिसे सम्मान पाने की वासना है या लोभ है। अमानी वो
है जिससे समाज ने स्वतंत्रतापूर्वक जीने का अधिकार छिना है, जिसकी आत्मा
को कुचला गया है, फिर भी उसने समाज को ईश्वर की इच्छा समझकर माफ़ कर दिया
हो और इस जीवन रूपी विष को पीना भी स्वीकार कर लिया हो। ऐसे अमानी
व्यक्ति को पुनः यथोचित सम्मान देकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ना ही
सच्चा प्रेम है। अपनी कृतज्ञता को व्यक्त करना ही प्रेम है। वह कृतज्ञता
स्वयं के हृदय से स्फूरित होना चाहिए ना की किसी के द्वारा थोपी गयी।
लोभी व्यक्ति ही स्वार्थी है। लोभवश एक व्यक्ति दूसरे भोले व्यक्ति के
दिमाग़ के साथ खिलवाड़ करता है, उसे वेवक़ूफ बनाके अपने स्वार्थ को पूरा
करता है। अपनी श्रद्धा को दूसरों पर नहीं थोपना चाहिए। दूसरों की श्रद्धा
का बोझ अपने सर पे ढोके व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। अपने साथ ज़बरदस्ती
नहीं करना चाहिए। स्वयं के लिए जो सहज हो वही करना चाहिए। दूसरों की
श्रद्धा को अपनाने के लिए अपने साथ ज़बरदस्ती करनी ही होगी। हठयोग से
सत्य की प्राप्ति नहीं होती है। इससे सिर्फ़ अभिमान ही पुष्ट होता है। जो
है सब यही धरती पर है। बेकार के परलोक इत्यादि के विचारों में मनुष्य को
नहीं उलझना चाहिए। हमने अपनी जो भी धारणाएँ बनायी है परलोक इत्यादि के
बारे में, सब यही धरती पर के व्यस्थाओं को देखकर ही बनाई है। ग़लती हमने
ये की है हमने कुछ चीज़ों को स्वीकार लिया है जो हमारे अनुकूल था और
बाक़ी को दुत्कार दिया है। अगर हम सत्य की प्राप्ति चाहते है तो हमें
सारी चीज़ों को सम्पूर्णता से स्वीकार करना होगा। सभी चीज़ों का महत्व है
लेकिन ज़रूरत पड़ने पर। इस सृष्टि में कुछ भी अकारण अथवा बेकार नहीं है।
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