कलियुग में सभी लोग धर्म और ईश्वर का आश्रय छोड़कर आपस में एक-दूसरे पर ही निर्भर रहनेवाले होंगे. प्रायः सब लोग अधिक संतान वाले होंगे. भिक्षा से जीवन निर्वाह करनेवाले सन्यासी भी मित्र आदि के स्नेह-सम्बंध में बँधे रहनेवाले होंगे. स्त्रियाँ दोनों हाथों से सिर खुजलाती हुई गृहपति की आज्ञा का जान-बूझकर उलंघन करेंगी.
सम्पूर्ण जगत के हित-साधन में लगे रहनेवाले जो मनुष्य सदा रामायण के अनुसार वर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रों के मर्म को समझनेवाले और कृतार्थ हैं. जो पाप के बंधन में जकड़ा हुआ है, वह रामायण की कथा आरम्भ होने पर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्नकोटि की बातों में फँस जाता है. उस असद्गाथाओं में अपनी बुद्धि के आसक्त होने के कारण वह तदनुरूप ही वर्ताव करने लगता है. रामायण आदिकाव्य है. जिस घर में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है. वहाँ जाने से दुष्टों के पापों का नाश होता है.
सनक़ादि महात्मा में अहंकार का तो नाम भी नहीं है. वे सब के सब ऊर्ध्वरेता हैं. सनक, सनन्दन, सनतकुमार और सनातन - ये चारों सनक़ादि माने गये हैं. सदा ब्रह्म के चिंतन में लगे रहते हैं. बड़े सत्यवादी है. सूर्य के समान तेजस्वी और मोक्ष के अभिलाषी हैं.
भगवान विष्णु के चरणों से प्रकट हुई परम पुण्यमयी गंगानदी को सीता भी कहते हैं.
जिनका निवास-स्थान परम उत्कृष्ट है तथा जो सगुण और निर्गुण रूप हैं, उन श्रीराम को मेरा नमस्कार है. श्रीराम एक होकर भी चार स्वरूपों में अवतीर्ण होते हैं. भगवान की महिमा को जानने के लिए कार्तिक, माघ और चैत्र के शुक्ल पक्ष में रामायण की अमृतमयी कथा का नवाह श्रवण करना चाहिए.
परम बुद्धिमान गौतम ऋषि पूर्णकाम और तेज़ की निधि हैं, वे शिष्य के वर्ताव से रूष्ट न होकर शांत ही बने रहे. उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई की मेरा शिष्य शास्त्रोक्त कर्मों का अनुष्ठान करता है. जगत के गुरु महादेव शिव गुरु की अवहेलना से होने वाले पाप को नहीं सह सकते हैं.
राक्षष-शरीर सदा भूख-प्यास से पीड़ित तथा क्रोध के वशीभूत होते हैं.
सम्पूर्ण जगत के हित-साधन में लगे रहनेवाले जो मनुष्य सदा रामायण के अनुसार वर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रों के मर्म को समझनेवाले और कृतार्थ हैं. जो पाप के बंधन में जकड़ा हुआ है, वह रामायण की कथा आरम्भ होने पर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्नकोटि की बातों में फँस जाता है. उस असद्गाथाओं में अपनी बुद्धि के आसक्त होने के कारण वह तदनुरूप ही वर्ताव करने लगता है. रामायण आदिकाव्य है. जिस घर में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है. वहाँ जाने से दुष्टों के पापों का नाश होता है.
सनक़ादि महात्मा में अहंकार का तो नाम भी नहीं है. वे सब के सब ऊर्ध्वरेता हैं. सनक, सनन्दन, सनतकुमार और सनातन - ये चारों सनक़ादि माने गये हैं. सदा ब्रह्म के चिंतन में लगे रहते हैं. बड़े सत्यवादी है. सूर्य के समान तेजस्वी और मोक्ष के अभिलाषी हैं.
भगवान विष्णु के चरणों से प्रकट हुई परम पुण्यमयी गंगानदी को सीता भी कहते हैं.
जिनका निवास-स्थान परम उत्कृष्ट है तथा जो सगुण और निर्गुण रूप हैं, उन श्रीराम को मेरा नमस्कार है. श्रीराम एक होकर भी चार स्वरूपों में अवतीर्ण होते हैं. भगवान की महिमा को जानने के लिए कार्तिक, माघ और चैत्र के शुक्ल पक्ष में रामायण की अमृतमयी कथा का नवाह श्रवण करना चाहिए.
परम बुद्धिमान गौतम ऋषि पूर्णकाम और तेज़ की निधि हैं, वे शिष्य के वर्ताव से रूष्ट न होकर शांत ही बने रहे. उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई की मेरा शिष्य शास्त्रोक्त कर्मों का अनुष्ठान करता है. जगत के गुरु महादेव शिव गुरु की अवहेलना से होने वाले पाप को नहीं सह सकते हैं.
राक्षष-शरीर सदा भूख-प्यास से पीड़ित तथा क्रोध के वशीभूत होते हैं.
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